कैसे कहूं मैं बात अपनी ..
जो भाषा बोलूं ..वो किसी और की बनाई ..
जो विचार सोचूं ..उनपर औरों का असर ..
ये काया मेरी ..वरदान है प्रकृति की ..
ये नाम मेरे ..कईयों ने रखे ..
ये पहचानें मेरी ..बस दूसरों की नज़रों में मेरी छवियाँ ,,
ये राहें मेरी ..मेरी कहाँ ..औरों की नक़ल या सलाहें हैं ..
फिर कैसे कहूं में ..बात अपनी ..
..
हाँ ..ख़ामोशी मेरी अपनी है ..
ख़ामोशी ..शब्दों की ही नहीं …विचारों की भी ..
ऐसा खामोश हो जाऊं ..तो मैं मैं हो जाऊं ..पूरा ..सौ फी सदी मैं ..
एक ऐसा मैं , जिसकी पहचान में किसी और का कतरा भी न हो ..
नवीन पूर्ण स्वयंभू कालातीत ..बस मैं
बस मैं मैं हो जाऊं .. तब सच में कह पाउँगा शायद ..बात अपनी .
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