कन्या – नव-जीवन का आधार : by Shashi
A poem by mom..woven around the social evils such as female foeticide and other social evils that a girl-child is subjected to.
(English script also given below)
ठहर सा गया है जीवन का सहज स्वाभाविक विस्तार,
है क्यों दमित और उपेक्षित आज जननी, नव-जीवन का आधार.
जीने दो मुझे जीने दो,
जीवन की बगिया को पनपने और महकने दो.
नव कोपलों को ज़रा फूटने दो,
इन्हें खिलने और निखरने तो दो.
न रौंदो इन्हें खिलने से पहले,
नव-चेतना की नींव हैं ये, इन्हें ज़रा संभलने तो दो.
सुरम्य सुरभि सर्वत्र फैलने दो,
बनजर होती वसुंधरा को ज़रा सजने और संवरने तो दो.
जड़ों को काटकर कलियों को ना बचा पाओगे,
अज्ञानवश ये कैसा कदम उठा रहे हो.
कुदरत के बहाव को रोक कर,
कहाँ तक और कब तक चल पाओगे?
प्रकृति के पालने में पलती बढ़ती,
किशोरावस्था की देहलीज़ पर दस्तक देती…
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